बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र
प्रश्न- कुषाण कालीन सूर्य प्रतिमा पर प्रकाश डालिये।
उत्तर -
कुषाणकाल से पूर्व भारतीय परम्परा में सूर्य मूर्तियों का निर्माण मानव रूप में होता हैं किन्तु कुषाणकाल में ईरानी प्रभाव तथा कुषाणों के संरक्षण में सूर्य मूर्तियाँ नये ढंग से बनायी गयी। मथुरा सूर्योपासना की ईरानी परम्परा का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा है। मथुरा की कला में ईरानी परम्परा में निर्मित सूर्य-मूर्तियों में मानवरूप में सूर्य को उदीच्यवेश में लम्बा कोट, पायजामा और बूट धारण किए हुए दो अथवा चार अश्वों में जुते हुए रथ पर सवार प्रदर्शित किया गया है। ठीक यही वेश- भूषा कुषाण नरेशों की मूर्तियों में भी प्रदर्शित है। सूर्य के हाथों में तलवार और कमल का प्रदर्शन किया है। आरम्भिक कुषाणकालीन मूर्तियों में सूर्य के हाथ में दो अश्वों का और बाद में चार अश्वों का प्रदर्शन किया गया। मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित अनेक कुषाणकालीन सूर्य मूर्तियों में सूर्य को उदीच्यवेश में प्रदर्शित किया गया है। मथुरा की प्राचीन कुषाणकालीन सूर्य मूर्तियों में एक मूर्ति विशेष दर्शनीय है जिसमें सूर्य चार अश्वों से जुते हुए एक चक्र वाले रथ पर आरूढ़ है, उनके दाहिने हाथ में कमल - कालिका और बाएँ हाथ में एक छोटी सी खड्ग है, उनके पीछे दिव्यता सूचक प्रभामण्डल है और वे लोचक तथा बूट धारण किये हुए हैं। इस मूर्ति की महत्त्वपूर्ण विशेषता सूर्य के कन्धों पर एक-एक पंख का प्रदर्शन है। संभवतः सूर्य के आकाशभ्रमण की कल्पना को मूर्त रूप देना शिल्पी का अभीष्ट प्रतीत होता है। इस बात की भी अधिक संभावना है कि पंख के प्रदर्शन पर ईरानी कला परम्परा का प्रभाव हो क्योंकि ईरान में पंखयुक्त मूर्तियों का निर्माण किया जाता था। सूर्य मूर्तियों में कोट, सलवार, बूट, तलवार आदि तत्वों के प्रदर्शन से स्पष्ट हो जाता है कि कुषाणकालीन मथुरा की कला में निर्मित सूर्य-मूर्तियाँ, विदेशी प्रभाव से प्रभावित हैं। इस नवीन परम्परा में निर्मित सूर्य-मूर्तियों का कारण भण्डारकर महोदय ने 'मग' नामक पारसीक (ईरानी) पुरोहितों के एक वर्ग का भारत में आगमन बतलाया है।
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